JK 20 P 420 , रियासी to कटरा to जम्मू भाग - 1
'भैया थोडा साइड होना'
आखिरी सीट पे बैठे हुए तीन दोस्तों में से एक से मैंने कहा
इतना कहते ही उसने मेरी तरफ, इस तरह देखा
जैसे मानो ,मैंने उससे उसकी सीट नहीं बल्कि किडनी मांग ली हो
खैर, ये रिएक्शन देखने की,अब तो आदत सी हो गयी है
क्या करूँ मुसाफिर जो हूँ
हज़ारो किलोमीटर की यात्रा में,
सौइयो तरह के लोग मिलते हैं,
पचसियो से बात होती है,
20 अच्छी , 20 बुरी
10 ऐसी भी होती है जिनका कोई सर पैर नहीं होता पर होती जरूर है ।
क्योंकि इसका नाम सफ़र है ,
और सफ़र में suffer भी करना ही पडता है
कोई ऐसे भी लोग मिलते है ,जो मिलते ही एक सवालो का बैग खोल देते है।
कहाँ से आ रहे हो?
कहाँ रहते हो क्यों रहते हो ???
क्या करते हो ??
ये क्यों नहीं करते ??
हजारो सवाल,
कभी कभी तो इतना पूछ लेते है की
अगर इतना कभी पढाई के लिए याद कीया होता तो शायद आई.ए.एस बन गए होते आज ।
और ये केवल बस की बात नहीं है ,
आप ट्रेन में जाओ या मेट्रो ट्रेन में ,
हर जगह हर समय ऐसा ही सब कुछ होता है ,
क्योंकि ये भारत है मेरे दोस्त,
और अब इन सब चीज़ों की इतनी आदत सी हो गयी है कि इनके बिना सफ़र असफल सा लगता है ।
खैर मैं भी भटका हुआ राही हूँ
शुरू हुआ था JK 20 P 0420 की बात से और पहुँच गया पूरे भारत की बात पर ।
तो कुछ यूँ हुआ
के जैसे ही मैंने अपनी तशरीफ़ बस की आखिरी सीट पे टिकाई,
बचपन के दिन याद आ गए ,
जब हम पजल वाले गेम के टुकड़ो को जबरदस्ती जोड़ने की कोशिश करते थे और मैं वो ही पजल का टुकड़ा बन बैठा , जिसको जोड़ने की कोशिश बस कंडक्टर कर रहा था ।
बस में जैसे जैसे भीड़ बढ़ती रही, ऑक्सीजन की मात्रा घटती रही।
फिर कुछ देर में आगे वाली सीट पे बैठे एक अंकल ने एक तीख़ी सी आवाज़ निकाली ,
पर अफ़सोस की वो आवाज़ उनके मुह से नहीं निकली थी ।
और चंद ही मिनटो में ज़ेहर पूरी बस में फैलता इतने में बस चल पढ़ी।
बस चली और हवा का आवागमन होने लगा
शाम का समय था और रास्ता पहाड़ी था,
एक पहाड़ से दुसरे पहाड़ , कभी पहाड़ बायीं तो कभी दायीं ओर,
पूरे रस्ते यही चलता रहा ,ठण्ड काफी थी ।
के जैसे ही मैंने अपनी तशरीफ़ बस की आखिरी सीट पे टिकाई,
बचपन के दिन याद आ गए ,
जब हम पजल वाले गेम के टुकड़ो को जबरदस्ती जोड़ने की कोशिश करते थे और मैं वो ही पजल का टुकड़ा बन बैठा , जिसको जोड़ने की कोशिश बस कंडक्टर कर रहा था ।
बस में जैसे जैसे भीड़ बढ़ती रही, ऑक्सीजन की मात्रा घटती रही।
फिर कुछ देर में आगे वाली सीट पे बैठे एक अंकल ने एक तीख़ी सी आवाज़ निकाली ,
पर अफ़सोस की वो आवाज़ उनके मुह से नहीं निकली थी ।
और चंद ही मिनटो में ज़ेहर पूरी बस में फैलता इतने में बस चल पढ़ी।
बस चली और हवा का आवागमन होने लगा
शाम का समय था और रास्ता पहाड़ी था,
एक पहाड़ से दुसरे पहाड़ , कभी पहाड़ बायीं तो कभी दायीं ओर,
पूरे रस्ते यही चलता रहा ,ठण्ड काफी थी ।
बस में हो रही चहल पहल से परे,आसमान में कोसो दूर जो नजारा था, वो मेरे बोझल मन को हल्का कर रहा था ।
एक तरफ तो विशालकाय सूरज पहाड़ो के पीछे धीरे धीरे आँखों से ओझल हो रहा था
और वही दूसरी ओर 'चाँद' सैकड़ो तारो के साथ उसके ओझल होने की घात लगाए बैठ था |
वो चाँद जो तारो से जगमगाते आस्मां में खूबसूरती से पैठ कर रहा था
उसको देखते देखते मैं ना जाने किस ख्वाब में खो गया और ख्वाब टूटा एक झटके के साथ।
सीट आखिरी थी पर झटके आखिरी नही
ना जाने इस पहाड़ी रस्ते में कितने झटके और बाकी थे ??
बस ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी और आधी सवारियां अपनी सीट से थोडा इधर उधर हो गयी
तभी एक दुसरे चाँद की झलक दिखाई दी
ये चाँद मुझसे कोसो नहीं बल्कि कदमो दूर था
बस रुकी और एक पहाड़ी लड़की ने बस में प्रवेश किआ
उसकी सुंदरता को देख सबकी आँखों के तारे टिमटिमाने लगे ।
उसके चेहरे पे मदहोश कर देने वाली एक अद्भुत चमक थी ।
जैसे पौं फटने के समय आस्मां में होती है।
ऐसी अनोखी सुंदरता जिसको बयान करने में अच्छे अच्छे लेखक भी निशब्द हो जाए,
और उस चेहरे की झलक से ही सफर का suffer होना खत्म हो गया |
बस में बहुत भीड़ थी और उस भीड़ में भी कुछ आशिक़ मिजाज़ लोगो ने उस लड़की को अपनी सीट देने की मंशा जताई ।
तभी एक दुसरे चाँद की झलक दिखाई दी
ये चाँद मुझसे कोसो नहीं बल्कि कदमो दूर था
बस रुकी और एक पहाड़ी लड़की ने बस में प्रवेश किआ
उसकी सुंदरता को देख सबकी आँखों के तारे टिमटिमाने लगे ।
उसके चेहरे पे मदहोश कर देने वाली एक अद्भुत चमक थी ।
जैसे पौं फटने के समय आस्मां में होती है।
ऐसी अनोखी सुंदरता जिसको बयान करने में अच्छे अच्छे लेखक भी निशब्द हो जाए,
और उस चेहरे की झलक से ही सफर का suffer होना खत्म हो गया |
बस में बहुत भीड़ थी और उस भीड़ में भी कुछ आशिक़ मिजाज़ लोगो ने उस लड़की को अपनी सीट देने की मंशा जताई ।
पर उसे भी सीट पे बैठना गवारा ना हुआ और अशिक़ो की कोशिश नाकाम रही ।
वो कुछ देर तक खड़ी रही और मैं भी टुकटुकि लगाये उसे चुपके से निहारता रहा
बस में अँधेरा था , पर फिर मेरी आँखें उसके हुस्न के दीदार में जुटी हुई थी ।
फिर बस कुछ दूर चल के रुकी , एक बसस्टॉप आया था ।
आधी बस खाली हो गयी और वो लड़की एक खिड़की वाली सीट पे जाके बैठ गयी ।
मैं भी उस निरंतर झटके देने वाली आखिरी सीट से उठा और उसके साथ जाकर बैठ गया ।
इरादा नेक था और मन में भी ख्याल एक था
के काश इस लडकी से रूबरू होने का मौका मिल सके इस पहाड़ी सफ़र में
मैंने उसे मन ही मन, मानो उसे अपनी किस्मत में लिखा जीवन भर तक साथ देने वाला एक लेख मान लिया हो
वही लेख जो हर किसी की किस्मत में लिखा होता है।
उस से बात करने की मन को बहुत लालसा थी ,
तभी मैंने धीमी सी आवाज़ में उससे कहा....
कहानी में आगे क्या हुआ , जानने के लिए यहाँ दबाए
वो कुछ देर तक खड़ी रही और मैं भी टुकटुकि लगाये उसे चुपके से निहारता रहा
बस में अँधेरा था , पर फिर मेरी आँखें उसके हुस्न के दीदार में जुटी हुई थी ।
फिर बस कुछ दूर चल के रुकी , एक बसस्टॉप आया था ।
आधी बस खाली हो गयी और वो लड़की एक खिड़की वाली सीट पे जाके बैठ गयी ।
मैं भी उस निरंतर झटके देने वाली आखिरी सीट से उठा और उसके साथ जाकर बैठ गया ।
इरादा नेक था और मन में भी ख्याल एक था
के काश इस लडकी से रूबरू होने का मौका मिल सके इस पहाड़ी सफ़र में
मैंने उसे मन ही मन, मानो उसे अपनी किस्मत में लिखा जीवन भर तक साथ देने वाला एक लेख मान लिया हो
वही लेख जो हर किसी की किस्मत में लिखा होता है।
उस से बात करने की मन को बहुत लालसा थी ,
तभी मैंने धीमी सी आवाज़ में उससे कहा....
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