Saturday 8 October 2016

आज की दौड़ में कल की कुछ यादें।

एक समय था जब पिताजी के कंधे पर बैठ कर राम लीला देखने जाया करते थे ,
और वापसी में तलवार, धनुष-बाण या गदा में से एक वास्तु घर लाया करते थे, पैसे थोड़े होते थे लेकिन खुशियां बहुत थीं।
अब तो सभी रंग फीके पड़ गए है ।
ये नयी पीढ़ि के बच्चे कहाँ वो आंनद ले पाएंगे जो हम मिटटी में लोट पोट होकर लिया करते थे।
अब हेल्थ और हाईजीन वाले आडम्बर जो चल पढ़े है।
वरना पहले तो रोज स्कूल बस से उतरते ही रास्ते में शहतूत और जामुन के पेड़ों को जब तक ना छान लें, घर जाने का मन ही नहीं करता था।
अभी पिछले हफ्ते मंडी में 200 रुपए में बिकने वाले जामुन की कहानी सुनी थी।
60 रुपए किलो सेब, 150 का कीवी और 200 प्रति किलो जामुन।
खैर छोड़िये जनाब,कहाँ फलों में अटक गए
आज के बच्चों की बात करते है
सैनिटाइजर,नैपकिन,टिस्सु पेपर वाले बच्चों को मिटटी में खेलते ही छींक आ जाती है।
कब्बडी, खो-खो, पोषम पा, छुपन छुपाई,लंगड़ी टांग की बजाए अब एन.ऍफ़.एस,और प्ले स्टेशन के धुरंधर ज्यादा मिलते है।
हाँ, अगर किसी की रूचि हो तो हज़ारो रूपये में फीस लेने वाले लाखों कमाने वाले कोच को लोग हायर(hire) कर लेते है।
पहले साथ मिल कर खेला करते थे और तो घरों से बाहर ही कहाँ निकलते है बच्चे ?
एक दूसरे के घर जाकर बुलाने का जो चलन था उसको भी फ़ोन ने ख़तम सा कर दिया है ।
साधन कम थे फिर भी समय का अभाव नहीं लगता था और अब तो साधनों ने ही सारा समय खा लिया है।
क्या सही है क्या गलत इस बात की चर्चा हो तो संभवतः कोई निष्कर्ष ना निकले परंतु फिर भी इतना कहूंगा के पिताजी के साथ राम लीला देखने जाने में बहुत मज़ा आता था।
दुर्गा पूजा हो या गणेश पूजा, हर त्यौहार का एक अलग ही रोमांच रहता था
अब गणेश पूजा और दुर्गा पूजा के पंडालों में भी लोगो की रौनक और चमक धमक तो बड़ी है परंतु साथ ही साथ आधुनिकता के माया जाल में वो सेहजता से जीवन व्यापन करने वाला परिवार कहीं दिखाई नहीं देता। फैशन, शो-शा बाजी और एक्सक्यूज़ मी ज्यादा बढ़ गया है ।
जहां पहले लोग आरती के समय ताली बजाया करते थे अब आशीर्वाद को कैद करने के लिए फ़ोन से वीडियो बनाया करते हैं।
पहले बड़ों से मिलने पर पैर छुआ करते थे, फिर कुछ समय पहले घुटने छूने का रिवाज़ चल पढ़ा और अब आजकल तो सेल्फी लेकर काम चला लिया करते है ।
कल रात हॉस्टल की छत पर बैठे थे , ठण्डी ठण्डी हवा चल रही थी और दो दिशाओं से राम लीला की आवाज़ आ रही थी।
4 में से 1 भाईसाब जो की आयु में थोड़े बढे है उन्होंने कहा की अपने बच्चों को वो मज़े जरूर करा देना जो हमारे माता पिता ने हमें कराये थे, वो संस्कार भी पहुंचा देना जो हमें मिले थे ।
बस तो सोचा की कुछ विचारो को अपनी कलम के माध्यम से आप तक प्रस्तुत करूँ।
अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा ।
**जय श्री राम**

इसका उत्तर भी लोग हाय या हेल्लो से देना पसंद करते है।
फिर भी कहना चाहूंगा
**जय श्री राम**