Saturday 28 January 2017

मेरी पहली फोटोवॉक (Delhi Photowalk)

10-12 दिन हो आये है,7 -8 फोटू भी डाल दिए हैं इंस्टाग्राम पर, जो उस दिन खींचे थे, लेकिन लिखने की कसर और कसक बाकी रह गयी थी इसलिए लिख रहा हूँ।
25 दिन पहले एक मित्र की इंस्टा आई.डी पर देखा कि कोई फोटोवॉक होने वाली है ??? जिसका नाम ही पहली बार सुना हो उसे देखने की  कितनी उत्सुकता होगी खुद ही सोच लीजिये।
एक यार को फ़ोन लगाया और पूछा 
भाई,ये फोटोवॉक किस बला का नाम है ?
उसने कह दिया - फालतू के काम है।  
फिर दूसरे से पुछा, वहाँ क्या होगा, 
उसने भी कह दिया तुमसे ना हो पायेगा।

फिर किसी भले मानुस से पता चला कि फोटोवॉक एक ऐसी चाल होगी जहाँ लोग घूम घूम कर अलग अलग विषयों की फोटो लेंगे और इंस्टा या फेसबुक के माध्यम से साँझा करेंगे,यही सभी बातों को आँखों देखा करने के लिए मैं भी चला गया डेल्ही फोटोवॉक में।
सर्दियों के रविवार की सुबह कुछ 60 फ़ोटो खींचने के धुनि रामकृष्ण आश्रम मेट्रो के गेट नंबर दो पर एकत्रित हुए, इनमें से अधिकाँश फोटोग्राफरों की आयु 18-30 रही होगी। 
उस फोटोग्राफरों की भीड़ में कुछ दिग्गज भी थे। दिग्गज वो जिनके इंस्टाग्राम फॉलोवर्स हज़ारों में हों, इनके इर्द गिर्द नए फोटोग्राफर्स झुण्ड बना कर शायद  उनके अनुभवों जायज़ा ले रहे थे। और उस भीड़ में, मैं किसी ऐसे को ढूंढ रहा था जो कि मेरी ही तरह फ़ोन से फोटो खींचता हो, जिसका ये पहला फोटोवॉक हो और जो मेरी ही तरह नौसिखिया हो।
नहीं,नौसिखिया तो नहीं  लेकिन स्ट्रीट फोटोग्राफी में तो बिलकुल नया ही हूँ, आखिर स्ट्रीट फोटोग्राफी होता क्या है ? इन्ही सवालो के जवाबों को ढूंढने आया हूँ। 
7:45 का समय था एकत्र होने का, जैसे ही 8 बजे, श्वेता जी जो की इस फोटोवॉक की आर्गेनाइजर थीं उन्होंने सभी लोगों को  निर्देश देना शुरू किया कि पहले एक ग्रुप फोटो होगा,उसके बाद सभी फोटोग्राफर सामने वाली गली में घूम कर तसवीरें लेंगे और एक हैशटैग बताया जिससे खींचे गए सभी चित्र इंस्टा पर साँझा किये जाएंगे। 
फिर सभी अनजान साथियों का एक फोटो खींचा गया और सब अपने अपने तरीके से फोटो लेने में जुट गए, इतने में मैंने भी फ़ोन से कारीगरी करनी शुरू करि।  कुत्ते, बिल्ली, गाय और कबूतरों से की गयी शुरुवात ही और फिर जैसे ही पहाड़गंज के बाजार वाली गली में घुसे, 
तो देखा कि कोई ठण्ड में ठिठुरते
 बूढ़े चाचा की फोटो ले रहा है 
तो कोई चाय बेचने वाले भाई साब की, 
कोई टेढ़ा मेढा होकर अपने बड़े मुह वाले कैमरे से छोटी सी मिटटी के बर्तनों की दुकानों के चित्र ले रहा है , तो कोई दीवारों पर हो रखी नक्काशियों को चित्रों में तब्दलीन करने में जुटा है, पहले कुछ 
समझ ना आया क्योंकि मेरे पास तो बढे मुह वाला कैमरा ना था, लेकिन फिर समझ आया कि इसमें कैमरे से अधिक तरकीबें की जरुरत है , तो मैंने भी खूब फ़ोटो खींचे।
अच्छे-बुरे, काले-सफ़ेद, गोरे-सुनहरे,
सभी तरह के फोटो खींचे और जो नए दोस्त बने थे उन्हें दिखाए।
अब  उनमें से कुछ आपको दिखाता हूँ।
 
           साथी फोटग्राफर्स        

 
             तो कुछ फोटोग्राफी के शैकीन लोगो ने रामकृष्ण आश्रम से अपना सफर शुरू किया और फिर 
गली, मोहल्ले , चौराहे , दरवाज़े , मिनारें,  चिनारे
सब्जीवाले, दूधवाले,चायवाले,रिक्शेवाले,
कुम्हार,लौहार,औज़ार,बाज़ार
सैर-सपाटे, जूडो-कराते, पेड़-पंछी
नाई , परछाई,बादल,भगवान् जोकुछ मिला
 सब कुछ अपने बड़े मुह वाले कैमरों से तस्वीरों में कैद करने लगे।

               
किसी ने दूकान की फोटो ली, तो कोई कुम्हारों की कुटिया के चित्र सींच रहा था 
फिर जब गली में आगे बढ़े तो एक देसी सलून कम स्पा दिखाई दिया 
          
देसी स्पा 
ईंटों का भर काम था और ज़िम्मेदारियों का ज्यादा, तो ईंटें ज्यादा उठाने
लगे कि जैसे जिम्मेदारियां हलकी लगने लगें 

इतनी सारी मूर्तियों में से ना जाने कौनसी मूरत का फोटू  खींच रही होगी ये बालिका 

मौसम सुहाना था उस सुबह का 

ये हैं  मिस्टर मोहित निगम, फोटोग्राफी के शौकीन मोहित ने कुत्ते को जब पुचकारा तो कुत्ते इतरा गए और फोटो की मांग करने लगे, फोटो ना लेने पर कुत्तों ने अपना असली रूप दिखाया और दिखाते भी क्यों ना, अपनी गली में तो चूहा भी शेर होता है ये तो फिर भी कुत्ते थे।  

मोहन बिन मुरलिया 

इंटरनेशनल अम्मा के घर का दरवाज़ा 

चिलम का हो जाए इलम
जो पिए उसकी ज़िन्दगी  फिल्म
ना पिए उसके लिए है जुलम 

ये है लघु भारत, दिल्ली की गलियों से 

एक शानदार हँसी दिखाई बबली भैया ने, जब मैंने उनसे हँसने को कहा 

कुछ तरकीब लगाते भाई जान

गली से गुज़रते हुए यहाँ नज़र गई तो पता चला कि ये है
नगर निगम प्राथमिक विद्यालय, चौक छह टूटी पहाड़गंज 

इसके दरवाज़े को देखकर ऐसा लगता है कि कभी ये अंग्रेजों और मुग़लों दोनों के कब्ज़े में रहा होगा ,
पर अब किताबी ज्ञान का बटवारा होता है इस दरवाज़े के दरमियान 

कुछ ज्योतिषी आज कल रोज सुबह टेलीविज़न पर भाग्य उदय के लिए पशु पक्षियों को दान पानी देने की बात करते है ,उनके कई दर्शक यहाँ आकर इन बेजुबान प्राणियों का पेट भर जाते है। 
पंडित जी बोले थे की गाय को रोटी देने के बाद हाथ जोड़ लेना

पहाड़गंज में ना तो पहाड़ थे और ना ही कोई गंजा दिखाई दिया, बस कुछ गपोड़ी यार बना लाया और ढेर सारी फ़ोटुएं उतार लाया, जिसमें से कुछ आपनें देखीं। 
अरे चाचा की कहानी सुनना तो भूल गया 
चलिए जाते जाते चाचाजी कि कहानी भी सुन लीजिये
हर इतवार कुछ लोग आते हैं,
कपडे तो लेते नहीं
फोटू जरूर ले  जाते हैं

कपड़े तो बिकते नहीं
इसलिए प्यार बेच लेता हूँ
वो भी मुफ्त में,

गर चलता प्यार से घर
तो क्यों काटता बुढ़ापे में
इन गलियों के चक्कर

लेकिन जो था वो बाँट दिया
कुछ पैसों में, कुछ प्यार में
बस इतनी सी है
इन झुर्रियों के पीछे
के उस चेहरे की कहानी ।।

Sunday 8 January 2017

राजघाट (बबराला)


जी चाहता है, मैं भी एक दिन, 
उड़ जाऊं इस नील गगन में।।


आज बहुत समय बाद पैतृक घर वाले 
गंगाघाट में स्नान करने का अवसर प्राप्त हुआ ।।

जहां एक पेड़ पर पंछी बाहें पसारे
धूप का आनंद ले रहे थे ।।


कुछ नील गगन में ऊँची उड़ान भरकर 
दाना पानी खोज रहे थे,अपने लिए 
और उन नवजात पंछिओं के लिए 
जिन्होंने अभी तक कोई उड़ान नहीं भरी ।।

कल का दिन कड़ाके की ठण्ड में बीता,
आज खूब ऊर्जा देते सूर्यदेव बुला लाये,
सभी को माँ गंगा के घाट पर ।।
. .
रविवार का दिन है,
गर्मियों में तो खूब भीड़ होती है,
आज तो एकादशी भी है,
लोग अपनी मनोतियों को 
पूर्ण करने के लिए यहाँ 
दिन प्रतिदिन स्नान करने आते है ।।



.
लेकिन आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है 
क्योंकि मैं माँ गंगा के बारे में 
कुछ लिख पा रहा हूँ और 
आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ ।।

**यहाँ घाट पर कुछ विचित्र अनुभव होते है **

*ऊपर उड़ते पंछियों को तो आप देख ही चुके है। 

* घाट पर जो कोई प्रसाद चढ़ाता है , 
 उस प्रसाद को  यहाँ के बन्दर खा जाते है, खूब उधमी है ये।
ये बच्चे यहाँ सिक्के बटोरने आते है 

*और अगर फिर भी कुछ बच तो कुत्ते, बिल्ली भी है यहाँ।
*एक अम्मा आयी प्रसाद चढाने तो बाकी सब आ गए। 


*एक बन्दर ने दूर से किसी को प्रशाद डालते हुए देखा तो उछल के लपक लाया,
आटे की थाली थी, पूरा मुह गंदा कर लिया।
*घाट पर कुछ लोग सफाई करने भी आये थे, 
पूछने पर पता लगा हमारे कसबे के ही थे, 
हर रविवार आते है ।

*घाट पर मौजूद कुछ मंदिरों में वर्षभर साधू महात्माओं का वास रहता है,
जो केवल तीर्थ के समय, यहाँ से देवस्थानों की ओर पलायन करते है ।

*कुछ स्थानीय चाँट-पकोड़ी के विक्रेताओं का समूह, 
सुबह से शाम तक घाट पर रोटी कपडे के जुगाड़ में 
अपना जीवन व्यतीत करता  है।

*हमारे कसबे(बबराला) की आबादी 30 से 35 हज़ार है,
तो चौराहे से आज भी लोग बैलगाड़ी,जुगाड़,बसों और गाड़ियों 
के माध्यम से गंगास्नान के लिए जाते है ।

* गंगा जी पर महीने में 3 बार मेला लगता है -पूर्णिमा,अमावस्या और एकादशी।
*जीभ के चटकारे लेने वालो के लिए भी यह एक अद्भुत घाट है, 
   गंगा जी में जब जल का प्रवाह कम होता है 
तब जाल के बीच में कुछ भूमि का टुकड़ा निकल आता है 
गर्मियों में इस भूमि पर खूब खीरे, ककड़ी,खरबूजे और तरबूज की बेल उग  जाती है 

कभी समय मिले तो दर्शन करिये गंगा मैया के
 यहाँ से या फिर उत्तर प्रदेश के किसी भी घाट के । 
एक जैसा ही अनुभव मिलेगा पश्चिमी उत्तर  प्रदेश के किसी के अधिकतम घाट पर। 


नोट : गंगास्नान करते समय सोचा नहीं था के इसके बारे में लिखूंगा इसलिए चित्रों के अभाव ये ब्लॉग लिखा,आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। 

 *जय गंगा मैया*


Friday 6 January 2017

ओस की कुछ बूँदे (few drops of dew)

सर्दियों  की एक अलसाई सुबह,जब निकला  मैं घर से,
तो रास्ते में कुछ निर्वस्त्र पेड़ों को, 
ठण्ड में ठिठुरता देखा।  


कुछ दूर भाग कर पहुँचा एक बाग़ में,
जहाँ कुछ नन्ही कलियाँ उपजी थी,
तो कुछ उपजने की प्रक्रिया में थी। 
सुस्ताती कलि 

शरमाती कलि 

थी सभी कलियाँ प्रतीक्षा में किसी की,
किस की ?? मेरी तो नहीं।  
दिनकर की उन किरणों की,
 जो सुखा जाए,ओस की बूंदो को,



बूँदें जो हर शाम उनके, 
घर आँगन में दस्तक देती हैं 
और हर सुबह सूरज की किरणों,
को देखते ही छू मंतर हो जाती हैं। 

लेकिन वो ओस की बूदें,
इन कलियों की देह पर,
किसी आभूषण से कम ही कहाँ दिखती है ??
यकीं नहीं आता तो खुद ही देख लिजिए। 
मकड़ी के जाले  पर ओस के मोती 

ओस नहीं आभूषण है 




नोट : अपना  कीमती समय निकाल ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। 

Sunday 25 December 2016

देखो गधा पिशाब कर रहा है (Lodhi Art District)

यहाँ पेशाब करना मना है ।
देखो गधा पिशाब कर रहा है।
गधे के पूत, यहाँ मत मूत।
ये सभी बातें दिल्ली की गलियों के उन्ही सब कोनों से पढ़ने को मिलती थी जहाँ, कोई ना कोई इंसान अपने गधे होने की गवाही दे जाता था ।
मानता हूँ भाई प्रेशर बन गया होगा लेकिन अधिकतर ऐसा होता था कि जहाँ कोई गधा पिशाब कर रहा होता है, वही आस पास कोई जन प्रसाधन (सरल भाषा में शौचालय और मूत्रालय) बना होता था।
स्कूल से घर 6-7 किलोमीटर दूर था, तो रास्ते में कई गधे इंसान की रूप में दिखाई देते थे।
परिस्तिथि मानो यूँ थी कि कोई व्यक्ति अगर सड़क किनारे जा रहा हो, तो उसके फेंफड़े अमोनियम हीड्राकसीड से इतने भर जाते कि, बंद नाक भी खुल कर दम घुटने की गवाही देने लगती थी।
परेशान प्रशासन ने इसका एक उपाय खोज निकाला परंतु लोगों ने उसे फेल करते हुए देर ना लगायी,
पहले कुछ टाइल(tile) जगह जगह चिपकायी गयीं जिनपे भगवान,ईसा मसीह,मक्का और श्री सिख गुरुओं की फोटू थी लेकिन आदत से मजबूर लोग कोई ना कोई ऐसी जगह ढूंढ ही लेते थे जहाँ कोई धार्मिक चित्र वाली टाइल नहीं लगी होती थी।
फिर किसी ने एक और अच्छी सलाह प्रशासन को सुझाई जिससे पूरे शहर में खूबसूरती छाने लगी और लोगों ने भी सुधारना शुरू किया।
वो सलाह थी दीवारों पर चित्रकारी करने की ।
लोधी कॉलोनी का क्षेत्र सबसे ज्यादा खूबसूरत हो गया,
वही क्षेत्र जहां बचपन बीता, स्कूल की दसवीं तक की पढ़ाई भी वही से हुई।
पता चला तो बाइक उठा कर निकल पढ़ा सुंदरता को खोजने, लोधी रोड की गलियों में।




















सलाह एक और लाभ अनेक
1.इंसानों ने गधा बनना काम कर दिया।
2.पुरानी गलियों, इमारतों और दीवारों को नया स्वरुप मिला।
3.पर्यटन में वृद्धि हुई (मेरे जैसे कई लोग फोटू खींचने आने लगे)।
4.रोजगार बढ़ा उन्ही सब चित्रकारों,रिक्शे वालो और कैमेरामैन लोगो का जो आये दिन फोटू खींच के कुछ लिख डालते हैं।
5.अनेकों शिक्षाप्रद संदेश मिलते है जिनकी एक झलक बहुत से जीवन को प्रेरित कर जाती है ।
नोट-आपके बहुमल्य सुजाव और टिप्पड़ी की आशा करता हूँ ।