Sunday 25 December 2016

देखो गधा पिशाब कर रहा है (Lodhi Art District)

यहाँ पेशाब करना मना है ।
देखो गधा पिशाब कर रहा है।
गधे के पूत, यहाँ मत मूत।
ये सभी बातें दिल्ली की गलियों के उन्ही सब कोनों से पढ़ने को मिलती थी जहाँ, कोई ना कोई इंसान अपने गधे होने की गवाही दे जाता था ।
मानता हूँ भाई प्रेशर बन गया होगा लेकिन अधिकतर ऐसा होता था कि जहाँ कोई गधा पिशाब कर रहा होता है, वही आस पास कोई जन प्रसाधन (सरल भाषा में शौचालय और मूत्रालय) बना होता था।
स्कूल से घर 6-7 किलोमीटर दूर था, तो रास्ते में कई गधे इंसान की रूप में दिखाई देते थे।
परिस्तिथि मानो यूँ थी कि कोई व्यक्ति अगर सड़क किनारे जा रहा हो, तो उसके फेंफड़े अमोनियम हीड्राकसीड से इतने भर जाते कि, बंद नाक भी खुल कर दम घुटने की गवाही देने लगती थी।
परेशान प्रशासन ने इसका एक उपाय खोज निकाला परंतु लोगों ने उसे फेल करते हुए देर ना लगायी,
पहले कुछ टाइल(tile) जगह जगह चिपकायी गयीं जिनपे भगवान,ईसा मसीह,मक्का और श्री सिख गुरुओं की फोटू थी लेकिन आदत से मजबूर लोग कोई ना कोई ऐसी जगह ढूंढ ही लेते थे जहाँ कोई धार्मिक चित्र वाली टाइल नहीं लगी होती थी।
फिर किसी ने एक और अच्छी सलाह प्रशासन को सुझाई जिससे पूरे शहर में खूबसूरती छाने लगी और लोगों ने भी सुधारना शुरू किया।
वो सलाह थी दीवारों पर चित्रकारी करने की ।
लोधी कॉलोनी का क्षेत्र सबसे ज्यादा खूबसूरत हो गया,
वही क्षेत्र जहां बचपन बीता, स्कूल की दसवीं तक की पढ़ाई भी वही से हुई।
पता चला तो बाइक उठा कर निकल पढ़ा सुंदरता को खोजने, लोधी रोड की गलियों में।




















सलाह एक और लाभ अनेक
1.इंसानों ने गधा बनना काम कर दिया।
2.पुरानी गलियों, इमारतों और दीवारों को नया स्वरुप मिला।
3.पर्यटन में वृद्धि हुई (मेरे जैसे कई लोग फोटू खींचने आने लगे)।
4.रोजगार बढ़ा उन्ही सब चित्रकारों,रिक्शे वालो और कैमेरामैन लोगो का जो आये दिन फोटू खींच के कुछ लिख डालते हैं।
5.अनेकों शिक्षाप्रद संदेश मिलते है जिनकी एक झलक बहुत से जीवन को प्रेरित कर जाती है ।
नोट-आपके बहुमल्य सुजाव और टिप्पड़ी की आशा करता हूँ ।