Friday 6 January 2017

ओस की कुछ बूँदे (few drops of dew)

सर्दियों  की एक अलसाई सुबह,जब निकला  मैं घर से,
तो रास्ते में कुछ निर्वस्त्र पेड़ों को, 
ठण्ड में ठिठुरता देखा।  


कुछ दूर भाग कर पहुँचा एक बाग़ में,
जहाँ कुछ नन्ही कलियाँ उपजी थी,
तो कुछ उपजने की प्रक्रिया में थी। 
सुस्ताती कलि 

शरमाती कलि 

थी सभी कलियाँ प्रतीक्षा में किसी की,
किस की ?? मेरी तो नहीं।  
दिनकर की उन किरणों की,
 जो सुखा जाए,ओस की बूंदो को,



बूँदें जो हर शाम उनके, 
घर आँगन में दस्तक देती हैं 
और हर सुबह सूरज की किरणों,
को देखते ही छू मंतर हो जाती हैं। 

लेकिन वो ओस की बूदें,
इन कलियों की देह पर,
किसी आभूषण से कम ही कहाँ दिखती है ??
यकीं नहीं आता तो खुद ही देख लिजिए। 
मकड़ी के जाले  पर ओस के मोती 

ओस नहीं आभूषण है 




नोट : अपना  कीमती समय निकाल ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। 

14 comments:

  1. बहुत अच्छे भाईसाहब

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  2. Nice photography and writing

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  3. Manvendra Sharma6 January 2017 at 19:23

    Amazing Photography Skills aur writing to humesha achhi hoti hi hai bhaisahab ki

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  4. Bohut khoob. Aur likhiye isi shayerana andaz mei. .....wah.

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  5. Bohot hi khoobsurat tasveerein hain ye 👍👌

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  6. Bahot khub vai..nature at its best

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