Sunday, 3 April 2016

JK 20 P 420 भाग 2


तभी मैंने धीमी सी आवाज़ में उससे कहा -
'जरा खिड़की को बंद करेंगी 'और उसने बिना कुछ कहे सहेजता से खिड़की बंद कर दी ।
सूरज के छिपने के बाद ठण्ड बहुत बड़ गयी थी ऐसा पहाड़ी क्षेत्रो में अक्सर देखा जाता है ,
और खिड़कि से आती हुई शीतल हवा के साथ उसके उड़ते हुए बाल मेरे मुह पे आके ऐसे लग रहे थे , माँनो फूलों से कोई मेरे गालो को गुदगुदा रहा हो, लेकिन कुछ संवाद का सूत्र बने इसलिए मैंने उसे खिड़की बंद करने को  कहा ।
उसने खिड़की बंद करने के बाद अपने बालो को जैसे ही बाँधा तो उसकी सूरत की एक झलक दिखाई दी
बस फिर क्या था ?? मैं फिर से बावला हो गया उसकी खूबसूरती देख ।
अब सोचा की कुछ बात कर ही ली जाए तो
मैंने उसे पहले रास्ते के बारे में पूछा ,
उसने मेरे सभी प्रशनो  का उत्तर तो बखूबी दिया
लेकिन खुद मुझसे से कोई सवाल ना किया,
बस तो 3-4 बातों के बाद मैं भी शांत हो गया।
एक मौन जो वो धारण करे बैठी थी काफी समय से, बिलकुल वैसा ही मौन , मैं भी  अपने अंदर धारण करके दूसरी ओर खिड़की से भार, खूबसूरत पहाड़ो को निहारता रहा ।
भूल गया के मेरे साथ सीट पे कोई और भी बैठा है ।
और इतने में एक झटका लगा और आँख खुली।
हाँ जी , आँख खुली क्योंकि एक छोटी सी नींद की झपकी लग गयी थी ,
आँख खुलने पर ये जान पाया की मेरी 'कुछ दूरी की हमसफ़र' मेरे कंधे पर सर रख कर इतने सुकून से सो रही थी मानो बरसो का साथ हो ।
और तो और झटको से उसकी नींद को रत्ती भर भी फरक नहीं पढ़ा ।
अभी जम्मू कुछ दूर था , थकान भी काफी थी ।
पर अब मुझे नींद कहा आने वाली थी ???
पहले सोचा की उसका सर जो मेरे  कंधे पर था उसको सीधा कर देता हूँ,
फिर सोचा के उसे आवाज़ देके जगा देता हूँ।
पर मुझे उसका नाम भी नहीं पता था , करूँ तो क्या करूँ???
ऐसा  अजीब एहसास पहली बार हो रहा था ।
कुछ समय तक मैं बैठे बैठे भी सावधान की मुद्रा में रहा,
मानो एक ज़िम्मेदार नागरिक राष्ट्रिय गान के वक़्त सावधान खड़ा रहता हो,
साथ की कुछ सीटे भी खाली हो गयी थी लेकिन वो मैडम इस तरह सो रही थी की मेरे  उठने से वो गिर भी सकती थी,
मैंने उसका सोते रहना ही मुनासिब समझा और मैं फिर प्रकर्ति को निहारने में तल्लीन हो गया ।
आस पास की पहाड़ियों पर जगमगाती लाइट , अपने अपने घर को वापस लौटते पक्षी , तावि नदी में तेज वेग से हिलोरे लेता जल और उस वो रास्ता , सब कुछ इतना मनमोहक लग रहा था ।
अब जम्मू तो आ गया था लेकिन चाहत यही थी की ये सफ़र कभी खत्म ना हो ।
एक झटका फिर लगा , ड्राईवर ने अचानक से ब्रेक लगायी थी,
कंडक्टर जोर से बोला
नगरोटा वाले , अम्फला वाले , बड़ी ब्रह्मा वाले , बस स्टैंड वाले ,सबको यही उतरना पड़ेगा ।
ये बस  आगे नहीं जायेगी  ।
कुछ प्रदर्शनकारियो ने बसों के लिए रास्ता बंद किया हुआ था ।
कंडक्टर ने बताया की प्राइवेट बसों और 'सरकारी परिवहन सेवा' के कर्मचारियों की लड़ाई चल रही है और राष्ट्रपति शासन के चलते कोई फैसला भी नहीं हो पा रहा है , इसलिये प्राइवेट बस आगे नहीं जा सकती।
अब इसमें हम यात्रिओ का क्या दोष???
कंडक्टर की आवाज़ से साथ बैठी वास्तव में सोती हुई लड़की उठ गयी,
जागने पर जब उसने मेरे कंधे पर अपना सर देखा,
तो उसने मुझे मिश्रित भाव से देखते हुए कहा -
आपने मुझे उठाया क्यों नहीं , मैं कब से सो रही थी ???
अब मैं क्या कहता ? :(
मैंने कहा - आपके उठने से 5 मिनट पूर्व ही मेरी आँख खुली है ।
वो लड़की ना जाने क्यों, कुछ मुस्कुराई और चली गयी ।
समझ ना पाया ????
के उसने हँस के देखा या देख के हँसी क्योंकि
बस कंडक्टर की बातों से मैं इस चिंता में डूब गया था , की अब 50 मिनट में 30 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन की दूरी कैसे पूरी होगी ?
फिर मैं बस से उतरा और लोगो से पूछने लगा के कोई साधन मिल जाए रेलवे स्टेशन जाने का ??
आर्मी कैंट का इलाका था शाम काफी हो चुकी थी
मैं हताश था क्योंकि बस से उतरे हुए 15 मिनट बीत चुके थे और स्टेशन जाने का कोई साधन नहीं दिख रहा था, बस से उतरी साथी सवारिया भी जा चुकी थी।
मैं सड़क किनारे एक माइलस्टोन पर बैठा की , एक सफ़ेद रंग की स्कूटी आई जो कुछ कदम आगे जाके रुकी ।
आगे से आवाज़ आई - "चलो रेलवे स्टेशन"
आवाज़ जानी पहचानी लग रही थी, पर इस अनजान शेहेर में जानता ही कौन है मुझे ।
मैं सामान उठा के भागा
देखा हेलमेट के शीशे के पीछे वही बस वाला चेहरा था ।
ख़ुशी का कोई ठिकाना ना था,
स्कूटी पे बैठे पहले 2 मिनट कुछ बोल ना पाया
सोचता रहा इसे कैसे पता चला होगा के मुझे स्टेशन जाना है ??
फिर बात चीत शुरू हुई ,उसी ने कहा आपका क्या नाम है ?
उसका नाम नैमत था , नैमत कॉल -कश्मीर से , एम्.ए पोलिटिकल साइंस की छात्रा ,
पिता - आर्मी अफसर।
करीब 23 मिनट में नैमत ने बड़ी तेजी के साथ मुझे स्टेशन पहुंचा दिया ,
और वो 23 मिनट के सफ़र में हमने वो सभी बातें कर ली जो हमारे साथ 23 साल में हुई थी ।
सभी बातें तो नहीं लेकिन 23 सालो का एक सार , एक दुसरे के सामने खोल कर रख दिया।
फिर स्टेशन पहुंच के लगा के इस दोस्ती को आगे बढ़ाया जाए ,
तो उतरते वक़्त मैंने नैमत से उसका नंबर माँगा,
उसने अपना नंबर तो ना दिया लेकिन मेरा नंबर अपने हाथ पे लिख लिया।
और कहा मैं एक दिन जरूर फ़ोन करुँगी ,
वो चली गयी , चंद मिन्टो में रेलगाडी भी चल पढ़ी,
सफ़र सफल सा लगा भी और नहीं भी ,
लेकिन यही सफर है ।
कुछ खट्ठी मीठी यादों का सफ़र ।।।। :)

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लगा पढकर जैसे किसी प्रेम कहानी की शुरुआत हो रही है। आगे क्या हुआ बताये मेरा मोबाइल नम्बर 9871185513. आप नीरज जाट के सम्पर्क में रहे वो भी धुम्कड है। Google search kare mil jaeg " Neeraj Jat "

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