10-12 दिन हो आये है,7 -8 फोटू भी डाल दिए हैं इंस्टाग्राम पर, जो उस दिन खींचे थे, लेकिन लिखने की कसर और कसक बाकी रह गयी थी इसलिए लिख रहा हूँ।
25 दिन पहले एक मित्र की इंस्टा आई.डी पर देखा कि कोई फोटोवॉक होने वाली है ??? जिसका नाम ही पहली बार सुना हो उसे देखने की कितनी उत्सुकता होगी खुद ही सोच लीजिये।
एक यार को फ़ोन लगाया और पूछा
भाई,ये फोटोवॉक किस बला का नाम है ?
उसने कह दिया - फालतू के काम है।
फिर दूसरे से पुछा, वहाँ क्या होगा,
उसने भी कह दिया तुमसे ना हो पायेगा।
फिर किसी भले मानुस से पता चला कि फोटोवॉक एक ऐसी चाल होगी जहाँ लोग घूम घूम कर अलग अलग विषयों की फोटो लेंगे और इंस्टा या फेसबुक के माध्यम से साँझा करेंगे,यही सभी बातों को आँखों देखा करने के लिए मैं भी चला गया डेल्ही फोटोवॉक में।
सर्दियों के रविवार की सुबह कुछ 60 फ़ोटो खींचने के धुनि रामकृष्ण आश्रम मेट्रो के गेट नंबर दो पर एकत्रित हुए, इनमें से अधिकाँश फोटोग्राफरों की आयु 18-30 रही होगी।
उस फोटोग्राफरों की भीड़ में कुछ दिग्गज भी थे। दिग्गज वो जिनके इंस्टाग्राम फॉलोवर्स हज़ारों में हों, इनके इर्द गिर्द नए फोटोग्राफर्स झुण्ड बना कर शायद उनके अनुभवों जायज़ा ले रहे थे। और उस भीड़ में, मैं किसी ऐसे को ढूंढ रहा था जो कि मेरी ही तरह फ़ोन से फोटो खींचता हो, जिसका ये पहला फोटोवॉक हो और जो मेरी ही तरह नौसिखिया हो।
नहीं,नौसिखिया तो नहीं लेकिन स्ट्रीट फोटोग्राफी में तो बिलकुल नया ही हूँ, आखिर स्ट्रीट फोटोग्राफी होता क्या है ? इन्ही सवालो के जवाबों को ढूंढने आया हूँ।
7:45 का समय था एकत्र होने का, जैसे ही 8 बजे, श्वेता जी जो की इस फोटोवॉक की आर्गेनाइजर थीं उन्होंने सभी लोगों को निर्देश देना शुरू किया कि पहले एक ग्रुप फोटो होगा,उसके बाद सभी फोटोग्राफर सामने वाली गली में घूम कर तसवीरें लेंगे और एक हैशटैग बताया जिससे खींचे गए सभी चित्र इंस्टा पर साँझा किये जाएंगे।
फिर सभी अनजान साथियों का एक फोटो खींचा गया और सब अपने अपने तरीके से फोटो लेने में जुट गए, इतने में मैंने भी फ़ोन से कारीगरी करनी शुरू करि। कुत्ते, बिल्ली, गाय और कबूतरों से की गयी शुरुवात ही और फिर जैसे ही पहाड़गंज के बाजार वाली गली में घुसे,
तो देखा कि कोई ठण्ड में ठिठुरते
बूढ़े चाचा की फोटो ले रहा है
तो कोई चाय बेचने वाले भाई साब की,
कोई टेढ़ा मेढा होकर अपने बड़े मुह वाले कैमरे से छोटी सी मिटटी के बर्तनों की दुकानों के चित्र ले रहा है , तो कोई दीवारों पर हो रखी नक्काशियों को चित्रों में तब्दलीन करने में जुटा है, पहले कुछ
समझ ना आया क्योंकि मेरे पास तो बढे मुह वाला कैमरा ना था, लेकिन फिर समझ आया कि इसमें कैमरे से अधिक तरकीबें की जरुरत है , तो मैंने भी खूब फ़ोटो खींचे।
अच्छे-बुरे, काले-सफ़ेद, गोरे-सुनहरे,
सभी तरह के फोटो खींचे और जो नए दोस्त बने थे उन्हें दिखाए।
अब उनमें से कुछ आपको दिखाता हूँ।
अब उनमें से कुछ आपको दिखाता हूँ।
देसी स्पा |
ईंटों का भर काम था और ज़िम्मेदारियों का ज्यादा, तो ईंटें ज्यादा उठाने लगे कि जैसे जिम्मेदारियां हलकी लगने लगें |
इतनी सारी मूर्तियों में से ना जाने कौनसी मूरत का फोटू खींच रही होगी ये बालिका |
मौसम सुहाना था उस सुबह का |
ये हैं मिस्टर मोहित निगम, फोटोग्राफी के शौकीन मोहित ने कुत्ते को जब पुचकारा तो कुत्ते इतरा गए और फोटो की मांग करने लगे, फोटो ना लेने पर कुत्तों ने अपना असली रूप दिखाया और दिखाते भी क्यों ना, अपनी गली में तो चूहा भी शेर होता है ये तो फिर भी कुत्ते थे। |
मोहन बिन मुरलिया |
इंटरनेशनल अम्मा के घर का दरवाज़ा |
चिलम का हो जाए इलम जो पिए उसकी ज़िन्दगी फिल्म ना पिए उसके लिए है जुलम |
ये है लघु भारत, दिल्ली की गलियों से |
एक शानदार हँसी दिखाई बबली भैया ने, जब मैंने उनसे हँसने को कहा |
कुछ तरकीब लगाते भाई जान |
गली से गुज़रते हुए यहाँ नज़र गई तो पता चला कि ये है नगर निगम प्राथमिक विद्यालय, चौक छह टूटी पहाड़गंज |
इसके दरवाज़े को देखकर ऐसा लगता है कि कभी ये अंग्रेजों और मुग़लों दोनों के कब्ज़े में रहा होगा , पर अब किताबी ज्ञान का बटवारा होता है इस दरवाज़े के दरमियान |
कुछ ज्योतिषी आज कल रोज सुबह टेलीविज़न पर भाग्य उदय के लिए पशु पक्षियों को दान पानी देने की बात करते है ,उनके कई दर्शक यहाँ आकर इन बेजुबान प्राणियों का पेट भर जाते है। |
पंडित जी बोले थे की गाय को रोटी देने के बाद हाथ जोड़ लेना |
अरे चाचा की कहानी सुनना तो भूल गया
चलिए जाते जाते चाचाजी कि कहानी भी सुन लीजिये
हर इतवार कुछ लोग आते हैं, कपडे तो लेते नहीं फोटू जरूर ले जाते हैं कपड़े तो बिकते नहीं इसलिए प्यार बेच लेता हूँ वो भी मुफ्त में, गर चलता प्यार से घर तो क्यों काटता बुढ़ापे में इन गलियों के चक्कर लेकिन जो था वो बाँट दिया कुछ पैसों में, कुछ प्यार में बस इतनी सी है इन झुर्रियों के पीछे के उस चेहरे की कहानी ।। |