सर्दियों की एक अलसाई सुबह,जब निकला मैं घर से,
तो रास्ते में कुछ निर्वस्त्र पेड़ों को,
ठण्ड में ठिठुरता देखा।
कुछ दूर भाग कर पहुँचा एक बाग़ में,
जहाँ कुछ नन्ही कलियाँ उपजी थी,
तो कुछ उपजने की प्रक्रिया में थी।
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सुस्ताती कलि |
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शरमाती कलि |
थी सभी कलियाँ प्रतीक्षा में किसी की,
किस की ?? मेरी तो नहीं।
दिनकर की उन किरणों की,
जो सुखा जाए,ओस की बूंदो को,
बूँदें जो हर शाम उनके,
घर आँगन में दस्तक देती हैं
और हर सुबह सूरज की किरणों,
को देखते ही छू मंतर हो जाती हैं।
लेकिन वो ओस की बूदें,
इन कलियों की देह पर,
किसी आभूषण से कम ही कहाँ दिखती है ??
यकीं नहीं आता तो खुद ही देख लिजिए।
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मकड़ी के जाले पर ओस के मोती |
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ओस नहीं आभूषण है |
नोट : अपना कीमती समय निकाल ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
बहुत अच्छे भाईसाहब
ReplyDeletedhanywaad bhai .....:)
DeleteNice photography and writing
ReplyDeleteThank you so much ...:)
DeleteAmazing Photography Skills aur writing to humesha achhi hoti hi hai bhaisahab ki
ReplyDeleteThankYou Bhaio ....:)
DeleteBohut khoob. Aur likhiye isi shayerana andaz mei. .....wah.
ReplyDeletebas ji jitni aata tha likh diya ... :)
DeleteBohot hi khoobsurat tasveerein hain ye 👍👌
ReplyDeleteDhanywaaad Ji ....:)
DeleteNice Shubham
ReplyDeleteKeep it up!!!
Thank you :)
DeleteBahot khub vai..nature at its best
ReplyDeleteThank You Brother .... :-)
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