ज़िंदादिल आशिक़ है वो , शोख़ हसीनाओ का नहीं पर्वतों का,
करता है मन उसका प्रकृति की गोद में,बार बार बैठने को,
"अजी पैर नहीं है टायर है" ऐसा साथी हमसफ़र कहते थे।
लेकिन मैं भी हठीला हूँ ,
बिना देखे अगर कुछ सोच भी लूँ,
तो भी मुश्किल ही विश्वास करूँ ।
इसलिए भाईसाब के साथ पर्यटन का फैसला किया ।
पर्यटन तो क्या कहें यात्रा एक अच्छा और उपयुक्त शब्द रहेगा,
क्योंकि जिस स्थान पर हमें पहुंचना था वो किसी तीरथ या धाम से कम नहीं ।
नाम है मणिमहेश , कुछ लोग चम्बा कैलाश से भी इसको संबोधित करते हैं।
चम्बा कैलाश - हिमाचल के कई कैलाशों में से एक प्रमुख कैलाश है , जो की जिला चम्बा में स्थित है |
कैलाश का मतलब पर्वत श्रृंखला की वो उच्चतम चोटी या शिखर जिसे हम लोग महादेव भगवान् शिव के रूप में मानते है।
शब्दकोष के शब्द , कंठ का स्वर , मस्तिष्क के विचार , शरीर में चलती श्वास और इस माटी के पुतले में फूंके गए प्राण ,सब उसी की तो देन है ।
करता है मन उसका प्रकृति की गोद में,बार बार बैठने को,
"अजी पैर नहीं है टायर है" ऐसा साथी हमसफ़र कहते थे।
लेकिन मैं भी हठीला हूँ ,
बिना देखे अगर कुछ सोच भी लूँ,
तो भी मुश्किल ही विश्वास करूँ ।
इसलिए भाईसाब के साथ पर्यटन का फैसला किया ।
पर्यटन तो क्या कहें यात्रा एक अच्छा और उपयुक्त शब्द रहेगा,
क्योंकि जिस स्थान पर हमें पहुंचना था वो किसी तीरथ या धाम से कम नहीं ।
नाम है मणिमहेश , कुछ लोग चम्बा कैलाश से भी इसको संबोधित करते हैं।
चम्बा कैलाश - हिमाचल के कई कैलाशों में से एक प्रमुख कैलाश है , जो की जिला चम्बा में स्थित है |
कैलाश का मतलब पर्वत श्रृंखला की वो उच्चतम चोटी या शिखर जिसे हम लोग महादेव भगवान् शिव के रूप में मानते है।
शब्दकोष के शब्द , कंठ का स्वर , मस्तिष्क के विचार , शरीर में चलती श्वास और इस माटी के पुतले में फूंके गए प्राण ,सब उसी की तो देन है ।
चम्बा कैलाश के लिए पर्यटन तो चंडीगढ़ से ही शुरू हुआ किंतु दैवी यात्रा चम्बा के भरमौर नामक स्थान से शुरू हुई।
चंडीगढ़ से चम्बा से भरमौर का सफ़र भी कुछ कम रोचक ना था ।
17 जून शाम 6:30 की बस की टिकट करायी थी चंडीगढ़ से चम्बा के लिए ।
लेकिन अकस्मात ही तरुणभाई के समय सारिणी में परिवर्तन के चलते 16 जून को निकलने का फैसला किया ।
पहली मंज़िल थी चम्बा अब वो बदल के इन्दपुर हो गयी थी,
इन्दपुर सौरव जी के गाँव का नाम है और अब हम सुबह कुछ देर के लिए सौरव के घर जाकर यात्रा की सफलता के लिए, माता पिता का आशीर्वाद लेते हुये आगे चम्बा के लिए प्रस्थान करने वाले थे ।
हम मतलब - मैं , सौरव (250किलोमीटर साइकिल से घर जाने वाले) और चौधरी अमनदीप सिंह।
तीन लोग और यात्रा के अहम् साथियो से मिलने से पहले 3 पड़ाव।
अहम् साथी - वो दंपति जिनका मिलना सर्व प्रथम भोलेनाथ ने मणिमहेश में ही कराया था ।
दंपति - तरुण जी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती डॉ कमल प्रीत जी,एक बार यात्रा के दौरान दोनों मणिमहेश में मिले , भगवान् शिव ने ऐसा संजोग बनाया की जन्म जन्मान्तर के लिए एक दुसरे के हो गए ।
17 जून शाम 6:30 की बस की टिकट करायी थी चंडीगढ़ से चम्बा के लिए ।
लेकिन अकस्मात ही तरुणभाई के समय सारिणी में परिवर्तन के चलते 16 जून को निकलने का फैसला किया ।
पहली मंज़िल थी चम्बा अब वो बदल के इन्दपुर हो गयी थी,
इन्दपुर सौरव जी के गाँव का नाम है और अब हम सुबह कुछ देर के लिए सौरव के घर जाकर यात्रा की सफलता के लिए, माता पिता का आशीर्वाद लेते हुये आगे चम्बा के लिए प्रस्थान करने वाले थे ।
हम मतलब - मैं , सौरव (250किलोमीटर साइकिल से घर जाने वाले) और चौधरी अमनदीप सिंह।
तीन लोग और यात्रा के अहम् साथियो से मिलने से पहले 3 पड़ाव।
अहम् साथी - वो दंपति जिनका मिलना सर्व प्रथम भोलेनाथ ने मणिमहेश में ही कराया था ।
दंपति - तरुण जी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती डॉ कमल प्रीत जी,एक बार यात्रा के दौरान दोनों मणिमहेश में मिले , भगवान् शिव ने ऐसा संजोग बनाया की जन्म जन्मान्तर के लिए एक दुसरे के हो गए ।
हाँ , तो हम तीनो साथी रात 11:30 हॉस्टल से निकले ,
पहले कैब वाले को रास्ता समझाने में माथा पच्ची करी।
फिर 43 बस स्टैंड पहुँच कर जो बस पता चली वो 12:40 पर चलने वाली थी ।
पूरा एक घण्टा शेष था , और हम 12:40 वाली एक टूटी फूटी सी बस में चढ़े।
सरकारी बस थी लेकिन हालत बिलकुल खस्ता थी ,ऐसी बस या तो बचपन में पुरानी फिल्मो में देखि थी या फिर पाकिस्तानी सीरियल या फिल्मों में , इस प्रकार की बस भारत में अभी भी चलती है ये उस रात पता लगा।
पहले कैब वाले को रास्ता समझाने में माथा पच्ची करी।
फिर 43 बस स्टैंड पहुँच कर जो बस पता चली वो 12:40 पर चलने वाली थी ।
पूरा एक घण्टा शेष था , और हम 12:40 वाली एक टूटी फूटी सी बस में चढ़े।
सरकारी बस थी लेकिन हालत बिलकुल खस्ता थी ,ऐसी बस या तो बचपन में पुरानी फिल्मो में देखि थी या फिर पाकिस्तानी सीरियल या फिल्मों में , इस प्रकार की बस भारत में अभी भी चलती है ये उस रात पता लगा।
बस में आगे वाली सीटें जो कम हिलती थी उसपे अपना बैग रख कर कुछ देर बाहर तफरी मारी ।
फिर 12:15 बस में आके बैठे तो बाहर से एक आदमी आया जो पूरी तरफ नशे में धुत्त दिखाई देता था ।
उसने आते ही बस के बोनट पर पानी का ग्लास देकर मारा, पर किसी ने कुछ ना कहा , क्योंकि उस आदमी ने शराब पी हुई थी ।
इतने में मैं टिकट ले आया था , वो आदमी बस से उतरा,
फिर वापस आया , फिर ग्लास में पानी भरा,पिया , फिर बोंनाट पर ग्लास फेंख के मारा |
अब मन में एक डर हावी होने लगा , वो डर था की कहीं ये ड्राईवर तो नहीं ।
12:35 पर एक काली दाड़ी मूछ वाला भयानक सा , कमजोर सा दिखने वाला आदमी ड्राईवर की सीट पर आके बैठ गया और ये वही गिलास वाला आदमी था, जो अब हमें यमदूत से कुछ कम प्रतीत नहीं हो रहा ।
फिर 12:15 बस में आके बैठे तो बाहर से एक आदमी आया जो पूरी तरफ नशे में धुत्त दिखाई देता था ।
उसने आते ही बस के बोनट पर पानी का ग्लास देकर मारा, पर किसी ने कुछ ना कहा , क्योंकि उस आदमी ने शराब पी हुई थी ।
इतने में मैं टिकट ले आया था , वो आदमी बस से उतरा,
फिर वापस आया , फिर ग्लास में पानी भरा,पिया , फिर बोंनाट पर ग्लास फेंख के मारा |
अब मन में एक डर हावी होने लगा , वो डर था की कहीं ये ड्राईवर तो नहीं ।
12:35 पर एक काली दाड़ी मूछ वाला भयानक सा , कमजोर सा दिखने वाला आदमी ड्राईवर की सीट पर आके बैठ गया और ये वही गिलास वाला आदमी था, जो अब हमें यमदूत से कुछ कम प्रतीत नहीं हो रहा ।
अब हम सभी सवारियों ने अपने अपने भगवान् को याद किया की बस ठीक से चल जाए और कोई दुर्घटना ना हो
मैंने भी मन ही मन भगवान् भोलेनाथ को याद करते हुए कहा
ये कैसी परीक्षा ले रहे हो प्रभु ।
10-15 मिनट बाद ही मैं तो निश्चिन्त होकर सो गया ।
बीच बीच में आँख खुल जाती लेकिन डर से बचने के लिए मैंने सोये रहना ही ठीक समझा ।
3:30 बजे तेज बारिश पड़ने लगी और आधी बंद खिड़की से आती बारिश की बूंदों से मेरी आँख खुली ।
तो देखा की ड्राईवर के सामने वाले शीशे का वाइपर नहीं चल रहा था ।
बारिश , खराब वाइपर ,खटारा बस , शराबी ड्राईवर सब कुछ आज ही होना था, लेकिन बड़े बुजुर्ग कहते थे की किसी भी शुभ काम की शुरुवात में अगर बारिश हो जाए तो मानो भगवान् भी प्रसन्न हो गए ।
अब बस के शीशे में धुन्ध की परत और तेज़ आती बारिश की बूंदों से सामने से आते वाहन भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था ।
जैसे तैसे करके बस चल रही थी वही गनीमत की बात थी ।
बस का ड्राईवर बस को भगाते भगाते 2 नंबर सीट पर बैठे एक सवारी को बता रहा था की उसके द्वारा, एक आदमी की बस दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी है और इसके चलते उसे आधी तनख्वाह मिलती है ये सब बातें सुनकर तो नींद उड़नि ही थी ।
मैंने भी मन ही मन भगवान् भोलेनाथ को याद करते हुए कहा
ये कैसी परीक्षा ले रहे हो प्रभु ।
10-15 मिनट बाद ही मैं तो निश्चिन्त होकर सो गया ।
बीच बीच में आँख खुल जाती लेकिन डर से बचने के लिए मैंने सोये रहना ही ठीक समझा ।
3:30 बजे तेज बारिश पड़ने लगी और आधी बंद खिड़की से आती बारिश की बूंदों से मेरी आँख खुली ।
तो देखा की ड्राईवर के सामने वाले शीशे का वाइपर नहीं चल रहा था ।
बारिश , खराब वाइपर ,खटारा बस , शराबी ड्राईवर सब कुछ आज ही होना था, लेकिन बड़े बुजुर्ग कहते थे की किसी भी शुभ काम की शुरुवात में अगर बारिश हो जाए तो मानो भगवान् भी प्रसन्न हो गए ।
अब बस के शीशे में धुन्ध की परत और तेज़ आती बारिश की बूंदों से सामने से आते वाहन भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था ।
जैसे तैसे करके बस चल रही थी वही गनीमत की बात थी ।
बस का ड्राईवर बस को भगाते भगाते 2 नंबर सीट पर बैठे एक सवारी को बता रहा था की उसके द्वारा, एक आदमी की बस दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी है और इसके चलते उसे आधी तनख्वाह मिलती है ये सब बातें सुनकर तो नींद उड़नि ही थी ।
फिर होशियारपुर से आगे किसी अनजान जगह पर बस एक बार फिर रुकी ।
एक व्यक्ति जो ना तो ड्राईवर था , ना ही कंडक्टर था लेकिन फिर भी बस से उतरकर, बस का शीश साफ़ करने लगा था,
उसने टिकट भी ली थी लेकिन शीशा इतना शिद्दत से साफ़ कर रहा था क्योंकि उससे अपने प्राणों की खूब चिंता थी।
और तो और वो बस से उतरकर 2 चाय लेके आया , एक स्वयं के लिए और दूसरी 'यम दूत के मोसेरे भतीजे' ड्राईवर के लिए।
ड्राईवर ने चुस्की भरी और बस पठानकोट के लिए रवाना हो गयी।
ड्राईवर ने फिर प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए अपने चारो हाथ बस चलाने में खपा दिए ।
एक हाथ में चाय थी , दुसरे में स्टीयरिंग , तीसरे हाथ में गियर और चौथे से जनाब बारिश से भीगते शीशे को साफ़ कर रहे थे।
और जब किसी हाथ कोे फुरसत मिलती तो वो अपनी घनघोर जटाए (बाल और दाढ़ी) को कुरेदता था , सोना छिपा था शायद।
मीरथल पर बस रुकवा कर हम लोग उतरे और रोड पार करते ही एक बड़ा सा छावनी क्षेत्र दिखाई दिया जिसके साथ रेलवे लाइन जा रही थी।
एक व्यक्ति जो ना तो ड्राईवर था , ना ही कंडक्टर था लेकिन फिर भी बस से उतरकर, बस का शीश साफ़ करने लगा था,
उसने टिकट भी ली थी लेकिन शीशा इतना शिद्दत से साफ़ कर रहा था क्योंकि उससे अपने प्राणों की खूब चिंता थी।
और तो और वो बस से उतरकर 2 चाय लेके आया , एक स्वयं के लिए और दूसरी 'यम दूत के मोसेरे भतीजे' ड्राईवर के लिए।
ड्राईवर ने चुस्की भरी और बस पठानकोट के लिए रवाना हो गयी।
ड्राईवर ने फिर प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए अपने चारो हाथ बस चलाने में खपा दिए ।
एक हाथ में चाय थी , दुसरे में स्टीयरिंग , तीसरे हाथ में गियर और चौथे से जनाब बारिश से भीगते शीशे को साफ़ कर रहे थे।
और जब किसी हाथ कोे फुरसत मिलती तो वो अपनी घनघोर जटाए (बाल और दाढ़ी) को कुरेदता था , सोना छिपा था शायद।
मीरथल पर बस रुकवा कर हम लोग उतरे और रोड पार करते ही एक बड़ा सा छावनी क्षेत्र दिखाई दिया जिसके साथ रेलवे लाइन जा रही थी।
मीरथल में छावनी क्षेत्र की शुरुवात |
छावनी क्षेत्र में घुसने से पूर्व ही एक फौजी ने मुझे अपना फ़ोन जेब में ही रखने का निर्देश दिया
सुबह के 5:30 बज रहे थे लेकिन उस स्थान की हलचल देखते ही बनती थी
एक तरफ कुछ फौजी ड्रिल कर रहे थे, तो दूसरी ओर कुछ फौजी छोटे छोटे खाकी निक्करो में अपने रोज के कामो को अंजाम दे रहे थे, तभी एक तीखी सी आवाज आई , परेड शुरू हुई और साथ में आर्मी बैण्ड शुरू हो गया । भिन्न भिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों से आकाश गूँज उठा ।
तभी सौरभ के पिताजी हमें लेने आये । इंदौरा के इन्दपुर में एक खूबसूरत सा सफ़ेद रंग का घर जिसके पीछे फलों का बाग़ था और आँगन के आगे सब्जियों और फूलों की क्यारियां थी।
स्वादिष्ट आम का पेड़ और खुभसूरत फूल |
पहले दिनचर्या पूर्ण कर, अल्पाहार किया ,आम और संतरे के बाग़ देखे और सो गए। करीब 2 घंटे सोने के बाद हम 10 बजे घर के बाहर प्रतीक्षा में खड़े हो गए।
एम.डी.आर 42 पर 50 मिनट की प्रतीक्षा के बाद जसूर के लिए हमे बस मिली।
कहानी का अगला भाग - "मणिमहेश यात्रा भाग-2 (वादियों का सफर )
कहानी के अगले भाग के कुछ चित्र
अंतिम पड़ाव पर बढ़ते कदम |
Nice blog bhai ... bohat sahi likha likha hai
ReplyDeletethank you bhai...☺
DeleteKafi acha tarah se byaan kiya hai manimahesh ki yatra ka kisaa.......romaanchak .....
ReplyDeleteabhi, agle bhaag mei bhut romaanch bacha hai...Jude rahiye
DeleteAti uttam blog shubham ji..... dil khush ho gya
ReplyDeletedhanyawaad ji . dil khush hi rehna chahiye
Deletethank you bhaiya
ReplyDeleteBhai driver mostly esi hote hai... Ye toh Delhi k logo ka bhram h drink n drive accident krati h :p
ReplyDeleteShare me when u r done with part2
Keep rocking bhai esi ghumta reh life mai.. Aur share krta reh..
Bhai driver mostly esi hote hai... Ye toh Delhi k logo ka bhram h drink n drive accident krati h :p
ReplyDeleteShare me when u r done with part2
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अच्छा लगा पढकर लिखने की कला बहुत अच्छी है नीरज जाट के बोलोग blogs भी मुझे अच्छे लगते हैं
ReplyDeleteVery well Shubham your writing skills are amazing !keep it up ..
ReplyDeleteबस वाला यात्रा वर्णन पढ़कर आनंद आ गया।
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